किस्सा दर्द का है फिर भी सुनाता हूं इसे गुनगुना कर ।
वो रूठ कर खुश हो ले, मैं भी खुश होता हूँ उसे मनाकर ।
एक रात के मुसाफिर से तू इजहार-ए-मोहब्बत न कर ,
सुबह होते ही चला जाऊंगा मैं तो तुझे रुलाकर ।
पीले सोने की चमक से जलने वालों तुम्हें पता भी है ,
उसे निकाला गया है आग की गर्म भट्ठियों में तपाकर ।
बड़ी तहजीब का शहर है, यहां कुछ भी बेतरतीब नहीं ,
लाख गम हो दिल में, तब भी मिलिए सबसे मुस्कुराकर।
कुछ राज मेरे अगर तुझे भी पता है, फिर भी मुझे डर कैसा?
तुझ जैसे न जाने कितने मशहूर हुए हैं मेरे किस्से सुनाकर।
बेशक शौक फकीरों का है,लेकिन मजा शाहों का देती है
तुम भी शहंशाह बन जाओगे, जो कुछ है उसे लुटाकर।
मेरे मजहब से मेरी पहचान करने वालों धोखा हुआ है,
मैं खुद यहाँ तक पहुँचा हूँ मजहबी दीवारें गिराकर।
जिस शख्स को मैं पहचानता था उसके स्याह जमीर से,
अखबारों ने उसे ही चुनाव जिता दिया अच्छी खबरें चलाकर।
इस बाजार की रौनक महज दुकाने नहीं है 'कुमार'
बहुत पछताओगे जो चले गए ये खरीददार चेहरे घुमाकर।