कहीं प्यासी मरुभूमि,
तो कहीं फूस के छप्पर।
कहीं मुलायम पात,
कहीं कोमल गात पर।
फुनगियों को चूमती,
जी भर दुलार करती।
अँधेरी बँसवार में,
जाने क्या कुछ ढूँढती।
हर जगह,हर तरफ,
ये मतवाली जा रही है।
बूँदों की मद्धम ताल ,
देखो बरखा गा रही है।
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