इन बीहड़ों में भला अपना घर कौन बनायेगा ?
अगर हम भी नही रहे तो यहाँ दिल कौन लगायेगा ?
घर से बाहर कर दिया है जो तुमने घर के बुज़ुर्गों को ,
तुम्हारे दिलों में संस्कार की नई पौध कौन उगायेगा ?
मरालों के पंख कुतर कर उन्हें बगुला बना दिया,
नीर क्षीर का सहज भेद फिर यहाँ कौन बतायेगा ?
घरों में कैद कर रखा है जो तुमने नारियों को ही,
उनके बच्चों में फिर उड़ान का जोश कौन जगायेगा ?
अपने ही जब शामिल हो बस्तियाँ जलाने वालों में,
तो इन उजड़े हुये आशियानों को भला कौन सजायेगा ?
तुम लूटते हो और हम हैं बेबस से लुटने वालों में,
अगर तुम भी पराये हो गये तो अपना कौन रह जायेगा ?
आइनों पर कभी हमने भरोसा ही नही किया है 'कुमार',
तुम्हारी आँखें भी झूठ बोलने लगी तो सच कौन बतायेगा ?
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