मुझे सम्हालो बहक गये हम,
पीकर नयनों के मस्त प्याले।
सब ओर अँधेरा कर बैठे ये,
जो खुले केश उनके घुँघराले।
दंतकान्ति बिजली सी कौंधे,
अधरों का जाम छलका जाये
उस एक हँसी पर न्यौछावर हैं,
सुर सारे सरगम वाले।
आज उड़ा आँचल जो उनका,
इस बहती पवन पुरवाई में
खुशबू सब ओर बिखर गयी,
जो थी आँचल में डेरा डाले।
उन्हें देख निज सुधि भूल के,
नाच उठे मन मयूर मेरा
जैसे सावन में नाचे हैं मोर
देख बादल काले - काले।
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