एक तारा माँगा था आसमां से,
ख़्वाहिश कहाँ थी हजारों की ।
सिर झुकाए खड़ा रहा मगर,
खिड़की ना खुली दीवारों की ।
क्या-क्या न सितम ढाये हैं,
उस ज़ालिम ने मुझ पर
मेरे होंठों की प्यास जगाकर ,
सौगातें दी हैं अंगारों की ।
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