हिन्दी के दौड़ते भागते विचारों का चौराहा .......
एक तारा माँगा था आसमां से, ख़्वाहिश कहाँ थी हजारों की । सिर झुकाए खड़ा रहा मगर, खिड़की ना खुली दीवारों की । क्या-क्या न सितम ढाये हैं, उस ज़ालिम ने मुझ पर मेरे होंठों की प्यास जगाकर , सौगातें दी हैं अंगारों की ।
No comments:
Post a Comment