Monday, September 25, 2017

मेरा हाल पूँछा


आज  उन्होंने  हँसकर  मेरा हाल पूँछा।
झुकी नजरों ने मुझसे इक सवाल पूँछा।

जिसका  जवाब  हम  उनसे  चाहते  थे,
उन्होंने  उसी  सवाल  का जवाब  पूँछा।

खुली आँखों  से  मैं जो देखा करता था,
उन्होंने मुझसे आज  वही  ख्वाब  पूँछा।

दिलों  की  सौदेबाज़ी भी हो ही जाएगी,
जब  दिलों ने आपस मे भाव ताव पूँछा।

देखा है जो कुछ ख्वाब या हक़ीकत  है,
मैने खुद से 'कुमार' ये हजार बार पूँछा।

अफ़वाह

तुझे भूल गया हूँ,ये खबर महज़ अफवाह है।
सच तो ये है ,  तेरी यादों में ही मेरी पनाह है।

हकीकत क्या है ,ये जानकर करोगे ही क्या ,
धूल  है  जिस  पर वो आइना नही निगाह है।

सफ़ेद लिबास में जो लिपटा हुआ है जमाना ,
हक़ीकत में तो इसका ज़मीर बड़ा स्याह है।

आपस में बाँट ली तुमने तारों की जमात को ,
मगर सोचा है, ये रात की नजर में गुनाह है।

बेबसों को अपने खंज़र का हुनर दिखाते हो,
तुम शायद भूल जाते हो,उनके पास आह है।

चलता ही गया


खामोशियों  की उंगली थाम मैं बढ़ता ही गया।
मंज़िल पता न थी फ़िर  भी मैं  चलता ही गया।

उसके हसीन फरेबों  ने अहसास न होने दिया,
मैं  बेख़बर रहा  और  बदन  छिलता  ही  गया।

मेरे  अपने  हिस्से में  कोई  ख़ुशी  ही कहाँ  थी,
वह  खुश  था  यह  देखकर  मैं हँसता ही गया।

ख़ुद को भी माफ करने की क़ुव्वत न थी मुझमें,
न  जाने क्यों  उसकी  हर बात सहता ही गया।

एक  बार  देखा  निगाहों  में फिर सब भूल गए,
उसने  जैसा भी  कहा मैं  वैसा  करता ही गया।

मेरा  ख़ुद  का  कोई  रास्ता  ही न हुआ 'कुमार'
वो  जिधर भी ले चला मैं  उधर बहता ही गया।

सच कौन बतायेगा ?

इन  बीहड़ों  में  भला  अपना  घर  कौन बनायेगा ?
अगर  हम भी नही रहे तो यहाँ  दिल कौन लगायेगा ?

घर से बाहर कर दिया है जो तुमने घर के बुज़ुर्गों को ,
तुम्हारे दिलों में संस्कार की नई पौध कौन उगायेगा ?

मरालों  के  पंख  कुतर  कर  उन्हें  बगुला  बना दिया,
नीर क्षीर  का  सहज भेद  फिर  यहाँ  कौन बतायेगा ?

घरों में कैद कर रखा है जो तुमने नारियों को ही,
उनके बच्चों में फिर उड़ान का जोश कौन जगायेगा ?

अपने  ही  जब शामिल  हो बस्तियाँ  जलाने वालों में,
तो इन उजड़े हुये आशियानों को भला कौन सजायेगा ?

तुम  लूटते  हो  और  हम  हैं  बेबस से लुटने वालों में,
अगर तुम भी पराये हो गये तो अपना कौन रह जायेगा ?

आइनों पर कभी हमने भरोसा ही नही किया है  'कुमार',
तुम्हारी आँखें भी झूठ बोलने लगी तो सच कौन बतायेगा ?

बहक जाने दो

आज  उलझने  दो सांसों को सांसों से।
देख लो नजारों को तुम मेरी आँखों से।

मत  रोको  मुझे, बहक  जाने दो आज ,
भीग  जाने दो मुझको  इन बौछारों  से।

इतने गहरे उतर जाने दे रूह में अपनी,
मैं खुद को जब पहचानू तेरे इशारों से।

अपने बदन की खुश्बू मुझमें उड़ेल दो,
मैं बेअसर हो जाऊँ फूलों के झांसों से।

हर  एक अदा  मुझे सौ बार  दिखाओ,
सजा के रख लूँ इन्हें दिल में नाजों से।

तेरी बाहों में हम ऐसे सो जायें 'कुमार',
अब नींद उचटने ना पाये आवाजों से।

बरखा

कहीं प्यासी मरुभूमि,
तो कहीं फूस के छप्पर।
कहीं मुलायम पात,
कहीं कोमल गात पर।
फुनगियों को चूमती,
जी भर दुलार करती।
अँधेरी बँसवार में,
जाने क्या कुछ ढूँढती।
हर जगह,हर तरफ,
ये मतवाली जा रही है।
बूँदों की मद्धम ताल ,
देखो बरखा गा रही है।

वादा सावन का

घिरते काले  मेघ  जब जब,
चित्त में कुछ कौंध जाता है।

एक अनजानी  सी  दस्तक,
मन  सहसा चौंक  जाता है।

दामिनी खींच  देती है  जैसे,
काले बादलों पर लेख कोई।

वर्तमान  के  बेरंग  पलों में,
भरता  है चटख  रंग  कोई।

बादलों की धमाचौकड़ी में,
मानो कोई फुसफुसाता है।

सुखद अतीत  की कहानी,
कानों में हौले से सुनाता है।

बाहें  मेरी  होती थी  कभी,
रैन बसेरा उस साजन का।

जो आया कभी न लौटकर,
वादा कर अगले सावन का।





मेरा हाल पूँछा

आज  उन्होंने  हँसकर  मेरा हाल पूँछा। झुकी नजरों ने मुझसे इक सवाल पूँछा। जिसका  जवाब  हम  उनसे  चाहते  थे, उन्होंने  उसी  सवाल  का जवाब  ...