Monday, August 14, 2017

सावधान बच्चे हैं !

आज हम अपना स्वतंत्रता दिवस मना रहे हैं। आज के दिन को उत्सव की तरह मनाने के पीछे कई कारणों में एक यह भी है कि हम आने वाली पीढ़ियों में देश भक्ति का भाव भर कर उन्हें अपनी परंपराओं, संस्कृतियों से परिचित करा सकें । इस उत्सव को सभी स्कूलों में अनिवार्य रूप से मनाया जाता है क्योंकि यह स्कूल हमारी आने वाली पीढ़ियों को  सुसंस्कृत संस्कारों एवं विचारों से सिंचित करके कल का एक जिम्मेदार नागरिक बनाते हैं । बात स्पष्ट है कि आने वाली पीढ़ियों को सिखाने की सबसे अधिक जिम्मेदारी स्कूलों की ही होती हैं । इसी सिखाने के क्रम में हमारी भाषाओं का ज्ञान भी बच्चे स्कूलों से ही सीखते हैं । हिंदी भाषा, जो भारत के एक बड़े भूभाग की भाषा है, उसकी दशा इन स्कूलों में ही बहुत बुरी है। पहली बात तो यह कि जिन स्कूलों में हिंदी में बात करना वर्जित है उन्हें हम सबसे अच्छे स्कूलों में गिनते हैं। एक तरफ तो हम अखबारों में यह खबर पढ़कर खुश होते हैं कि हमारे प्रधानमंत्री / राष्ट्रपति ने संयुक्त राष्ट्र जैसे अंतर्राष्ट्रीय संस्था में अपना भाषण हिंदी में दिया । दूसरी तरफ हमारे अपने देश के तथाकथित अच्छे स्कूलों में हिंदी बोलना अपराध है । 

अब हम  मान लेते हैं, इन स्कूलों को लगता है कि हिंदी रोजगार परक भाषा नहीं है इसलिए उन्हें बच्चों के भविष्य को देखते हुए ऐसे कदम उठाने पड़ते हैं। इन स्कूलों का ऐसा तर्क कितना सही है या गलत इस पड़ताल में न पड़कर हम उनके इस तर्क को स्वीकार कर लेते हैं। अब हम बात करते हैं उन स्कूलों की जो अपने आप को हिंदी माध्यम के स्कूल कहते हैं। इनको लेकर एक उम्मीद हम सभी करते हैं कि कम से कम यह हमारी बेरोजगार परक हिंदी को एक अच्छी दिशा दें। बच्चों को हिंदी का समुचित ज्ञान प्रदान करें। ऐसा बहुत संभव है कि इन स्कूलों के अध्यापकगण ऐसा करते भी हों लेकिन इस बात पर विश्वास करने का मेरा मन नहीं होता है। माफ करिएगा मैं इन स्कूलों के अध्यापकों की क्षमता पर सवाल नहीं कर रहा हूं लेकिन इन स्कूलों की हिंदी वाली समझ पर जरुर सवाल करूँगा। सुबह शाम सड़कों पर दौड़ती इन स्कूलों की बसों से दो चार हो जाता हूँ। सभी बसों पर ‘सावधान बच्चे हैं !’ लिखा दिख जाता है। इस वाक्य को पढ़कर यही समझ आता है कि इस स्कूल बस में बैठे बच्चे सावधान हैं। लगभग एक से दो प्रतिशत बसों में ही ‘सावधान , बच्चे हैं!’ लिखा मिलता है, जो कि सही भी है। इस वाक्य का मतलब हुआ कि दूसरे वाहनों के चालक भी सावधान रहें। इस बस से बच्चे हैं।

आज जब हम अपनी आने वाली पीढ़ियों को अपने अतीत का स्मरण करा रहे हैं,उन्हें उसका गौरव गान सुना रहे हैं तो इतनी जिम्मेदारी और निभाएं कि सीखने सुनने का स्रोत भी त्रुटिरहित हो। सीखने-सिखाने और सुनने-सुनाने का महत्वपूर्ण साधन भाषा है और इसका त्रुटिरहित होना भी जरूरी है। एक सीखने वाले से भाषा को लिखने पढ़ने या फिर बोलने में त्रुटियाँ होना स्वाभाविक और क्षम्य भी है। लेकिन विद्या के मंदिरों के लिए यह झूठ नहीं हो सकती क्योंकि इन्हें ही तो सिखाने का जिम्मा मिला है। उम्मीद करता हूं कि अगली किसी सुबह किसी स्कूल बस में मुझे सावधान बच्चे बैठे न दिखे बल्कि मुझे सावधान होना पड़े कि बस में बच्चे बैठे हैं। मतलब ‘सावधान , बच्चे हैं !’ न कि ‘सावधान बच्चे हैं !’

Friday, August 11, 2017

बुरा होता है !

कौन  कहता  है  कि  कोई  भी  इंसान बुरा होता है।
वह  जिसमें  भी  है बस  वह  किरदार  बुरा होता है।

कैसे  मैं  किसी  भी  घर  के  बच्चों  को  बुरा कह दूँ ,
हकीकत तो ये है कि घर का  सरदार  बुरा होता  है।

यह  जिस्म तो उस  खुदा  की नेमत है अपने बंदों को,
अगर बुरा है तो बस इसका किराएदार बुरा होता है।

चंद  लम्हात  के  लिए  ही  हमको  मिली  है  जिंदगी,
पानी  के बुलबुले से बरसों  का ये करार बुरा होता है।

हमारे  किस्से   को  बड़ी  साफगोई  से  वो  कहता  है,
खबर  बुरी हो  तो  हो  कहाँ  अखबार  बुरा होता है ।

सबको नसीब हो 'कुमार' ,अपने हिस्से का उजाला,
चंद लोगों का यह रोशनी का कारोबार बुरा होता है।

Thursday, August 10, 2017

मुक्तक

वो  जो  थोड़ा सा मुस्कुरा  देते  हैं।
ना जाने  कितने  गम  छुपा लेते हैं।
ख़ुदा महफ़ूज रखे मेरे  दुश्मनों को,
जो मेरे ऐब जमाने को  बता देते हैं।

मुक्तक

एक तारा माँगा था आसमां से,
ख़्वाहिश कहाँ थी हजारों की ।
सिर  झुकाए खड़ा रहा  मगर,
खिड़की ना खुली दीवारों की ।
क्या-क्या  न  सितम  ढाये हैं,
उस    ज़ालिम    ने   मुझ   पर
मेरे  होंठों  की प्यास जगाकर ,
सौगातें   दी   हैं  अंगारों  की ।

मेरा हाल पूँछा

आज  उन्होंने  हँसकर  मेरा हाल पूँछा। झुकी नजरों ने मुझसे इक सवाल पूँछा। जिसका  जवाब  हम  उनसे  चाहते  थे, उन्होंने  उसी  सवाल  का जवाब  ...