Monday, September 25, 2017

अफ़वाह

तुझे भूल गया हूँ,ये खबर महज़ अफवाह है।
सच तो ये है ,  तेरी यादों में ही मेरी पनाह है।

हकीकत क्या है ,ये जानकर करोगे ही क्या ,
धूल  है  जिस  पर वो आइना नही निगाह है।

सफ़ेद लिबास में जो लिपटा हुआ है जमाना ,
हक़ीकत में तो इसका ज़मीर बड़ा स्याह है।

आपस में बाँट ली तुमने तारों की जमात को ,
मगर सोचा है, ये रात की नजर में गुनाह है।

बेबसों को अपने खंज़र का हुनर दिखाते हो,
तुम शायद भूल जाते हो,उनके पास आह है।

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