Saturday, July 29, 2017

चितचोर

चितचोर चोरी कर गया जिया!

खूब   भरमाया   उसने   मुझे,
अलकों  की  भूल  भुलैया  में।
मैं   डूबा   रहा   कितने   दिन,
नयनों  की  ताल   तलैया  में।
यह  मन  भी  बड़ा  बावरा है,
रीझ गया उस पर रसिया।1।

उसके अरुणिम  अधरों  ने,
मुश्किल कर दिया है जीना।
उसका  हर   अंग  नशीला,
पोर-पोर  यौवन रस भीना।
बरसे  जो  रस  की   फ़ुहार,
फूले मेरे  मन की बगिया।2।

अधखुले     दृगों    से      वह ,
मन मृग का शिकार करती है।
अलकावलि  में  सजे  पुष्प से,
तारों  को  भी  मात  करती है।
स्वप्नों    ही   स्वप्नों    में    मैं,
बन  बैठा  हूँ उसका पिया ।3।

No comments:

Post a Comment