Monday, September 25, 2017

बचाना है !

कलियों को भँवरों  की बुरी नजर से बचाना है।
डोलती कश्ती को लहरों की जद से बचाना है।

फरमान अगर सरकारी  भी है  तो क्या हुआ ?
अपने आशियानों को  बुलडोजर से बचाना है।

रफ़्तार देकर ज़िन्दगी का सुख चैन छीन ले जो,
हमें गाँवों को अपने  भागते शहर से बचाना है।

हर  खुशी  के  लिए  मशीनों  का  मुँह ताकती ,
जिंदगी  को  मशीनों  की गिरफ्त से बचाना है।

बद-दुआएँ तो हमारे हिस्से  में भी हैं  'कुमार' ,
हमें  खुद  को  इनके  बुरे असर से  बचाना है।

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