खुद से ही खुद का हम हाल पूँछते हैं।
रास्तों से मंजिल का मुकाम पूँछते हैं।
अकेले में तो पी-पीकर थक गया हूँ ,
तनहाई से महफ़िल का जाम पूँछते हैं।
बेहोशी का आलम हम क्या बतायें,
हर रहगुज़र से अपना नाम पूँछते हैं।
कभी हमारी आगोश में जो किये थे,
हम उनके वही वादे तमाम पूँछते हैं।
जब कोई नाम लेता है मोहब्बत का,
हम उससे इश्क़ का अंजाम पूँछते हैं।
'कुमार' हर किसी को वफ़ा मिलती हो,
पता बताओ हम वही अवाम पूँछते हैं।
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